भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) ने खिलाड़ियों की फिटनेस को परखने के लिए एक नया मानक पेश किया है, जिसे ब्रॉन्को टेस्ट (Bronco Test) कहा जाता है। अब तक क्रिकेटरों की फिटनेस को आंकने के लिए ज्यादातर यो-यो टेस्ट का इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन बढ़ते क्रिकेट कैलेंडर और खिलाड़ियों की सहनशक्ति की ज़रूरत को देखते हुए ब्रॉन्को टेस्ट को शामिल किया गया है।
दिलचस्प बात यह है कि यह टेस्ट क्रिकेट में नया है, लेकिन रग्बी जैसे हाई-इंटेंसिटी खेलों में लंबे समय से खिलाड़ियों की स्टैमिना और रिकवरी क्षमता मापने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है।
ब्रॉन्को टेस्ट सुनने में आसान लेकिन करने में काफी चुनौतीपूर्ण है। इसके लिए चार मार्कर लगाए जाते हैं – 0 मीटर, 20 मीटर, 40 मीटर और 60 मीटर पर।
खिलाड़ी को शुरुआत बिंदु (0 मीटर) से दौड़ना होता है:
पहले 20 मीटर तक जाकर वापस आना।
फिर 40 मीटर तक जाकर लौटना।
इसके बाद 60 मीटर तक जाकर लौटना।
इस तरह एक चक्र (set) में खिलाड़ी कुल 240 मीटर दौड़ता है। खिलाड़ी को ऐसे 5 सेट पूरे करने होते हैं, यानी कुल 1,200 मीटर की दौड़। खिलाड़ी का समय रिकॉर्ड किया जाता है और उसी आधार पर उसकी फिटनेस का आकलन किया जाता है।
खिलाड़ी की कार्डियोवैस्कुलर हेल्थ और लगातार तेज़ दौड़ने की क्षमता।
खेल के दौरान दिशा बदलते हुए तेज़ी से दौड़ने और रिकवरी की ताकत।
मानसिक सहनशक्ति, क्योंकि बिना आराम दिए लगातार दौड़ना आसान नहीं होता।
दरअसल, क्रिकेट में भी बल्लेबाज़ों को रन बनाते समय और फील्डिंग के दौरान बाउंड्री रोकने में इसी तरह की तीव्र दौड़ लगानी पड़ती है।
यो-यो टेस्ट: इसमें खिलाड़ी को इंटरवल (छोटे-छोटे आराम के समय) मिलते हैं। यह मापता है कि खिलाड़ी कितनी देर तक रुक-रुक कर तेज़ दौड़ लगा सकता है।
ब्रॉन्को टेस्ट: इसमें कोई आराम नहीं होता। खिलाड़ी को लगातार दौड़ना होता है। यह उसकी निरंतर सहनशक्ति और स्टैमिना की परीक्षा लेता है।
लगातार मैचों, यात्रा और लंबे टूर्नामेंट के बीच खिलाड़ियों की स्टैमिना और मानसिक ताकत का आकलन ब्रॉन्को टेस्ट से बेहतर ढंग से हो सकेगा।